Friday, November 3, 2023

अधिकारों की मांग 


लोगों  की बातें बातों में चर्चा अधिकारों की 

कोई मांगे अपने अधिकारों को 

कोई छीने सबके अधिकारों को 

संविधान  में  मानव अधिकारों का गठन हुआ । 

लोकतंत्र की   ढाल पर 

मानव अधिकारों का संगठन  हुआ ।

संविधान ने जब, मानव अधिकारों का गठन किया।

आजादी थी.तब .अभिव्यक्ति की, 

लोकतंत्र की.. यह ऐसी शक्ति थी।

 शक्ति का.फिर .वह दुरुपयोग हुआ।

हर नीति का बस केवल . विरोध-दर - विरोध हुआ

धर्मों की आजादी क्या.मिली । 

हर धर्म, दूसरे धर्म का कातिल हुआ। 

मानव अधिकारों के तराजू में,

हर शक्तिशाली का तोल हुआ।

अधिकारों के लिए लड़ा रहा है  समाज।

अनशन -आंदोलन पर अड़ा है समाज।

हर मुद्दे पर पार्टी बाजी हो रही है । 

घटिया राजनीति में भ्र्ष्ट नेताओं की कामयाबी हो रही है

भूखी जनता रोटी कपड़े को तरस रही है 

जनता के पैसों से नेताजी सड़के, पुल , और फ़ैक्टरिओं को बनाने की आड़ में डकार ले रहें हैं 

अंधी भेड़ों यानी भ्र्ष्ट नेताओं की अगवानी में, 

अधिकारों के लिए बस लड़ाई ही हो रही है ।

संविधान की धाराओं को नेता अपने स्वार्थ की गटर में बहा रहे हैं  और जनता अधिकारों पर अपनी लड़ाई लड़ रही है । 

हमारा अन्नदाता किसान अधिकारों की लड़ाई में पिस रहा है। 

रोज़ नये आंदोलन होते हैं पर नेताजी भी चिकना घड़ा बन बैठे हैं क्योंकि हर कानून की  तोड़ मतोड़ वो जान गये हैं 

महिला अपने अधिकारों की बात किससे कहे। 

जो उसे जन्मने से पहले ही कोख़ में मार देता है 

या जो पिता होकर उसके सपनों पर संस्कारों का अंकुश लगा देता है 

उसको भी पंख लगा कर अपनी कामयाबी का आसमान छूने का अधिकार पाना है 

बहुत बन चुकी वो भोली बेचारी अबला नारी 

बनना है उसको अब दुर्गा चंडी और महाकाली 

जो बनके शक्ति नवीन समाज का नव निर्माण करे 

जहां मिले सबको सम्मान और मिले समान अधिकार