भाव भरे मेरे आंसू
नमकीन पानी की कुछ बूंदे ज्ब आंखों की कोरों पर आ ठहरीं तो कहलाईं आंसू
नारी शक्ति का स्वरूप है फिर आंसू उसकी कमजोरी क्यों कहलातेँ हैं
कही कमजोरी ही हथिआर बनकर वार करती है जब पृकृति का सहयोग होता है
दुखी माता के दिल की हाहाकार तो इंद्र का भी आसन हिला देती है
भरे बदल भी बरखा बनकर आंसू बरसाते है
पत्ते पर ठहरी ओस की बूंदे भी प्रकृति के आंसू हैं
जहाँ दुख के आँसू अति पीड़ित असहनीय हृदय की व्यथा दर्शाता है
वहीं ह्रदय जब ख़ुशी आह्लादित होता है तो ख़ुशी के अश्रू आँखों से बह निकलते हैं
अश्रू हमारी भावनाओं का सच्चा आईना है
तभी तो हम हँसते हँसते रो पडते हैं
और रोते रोते हँस देते हैं
जहाँ शब्द गहरे शस्त्र है वहां आंसू पैनी धार से सीधे ह्रदय पर घाव करते हैं
आंसू तो आँसू ही हैं पर व्यथा से भरे और ख़ुशी से आह्लादित ह्रदय का सुकून भी आँसू ही हैं
ऑंसू वहाँ विजयी हैं जहां शब्द फीके और अर्थहीन हो जाते हैं
तो इसलिए रोईए जी भर रोईए मन के भावों का इज़हार कीजिए
मत सोचिए पुरूष होकर आप कमज़ोर कहलायेंगे या नारी होकर असहाय
ये तो राहत है अभिव्यक्ति है हमारे भावों की
ये ही तो मेरे भाव भरे आँसू जो आप सबकी आँखों में आ ठहरे हैं