Monday, October 6, 2008

फिर एक साँझ घिर आयी है.

फिर एक साँझ घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श की याद आयी है।
तन मन प्रेम रस से भिगो लाई है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर एक साँझ घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
न्यनों में न थमने वाली बरखा घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
रोते हुए होठों पे हंसी आयी है,
जब तुम्हारी सूरत झरोखे से नजर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर एक साँझ घिर आयी है।

2 comments:

गुरतुर गोठ said...

सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

neeshi said...

धन्यवाद