कान्हा के साथ मैने भी खेली होली
वृन्दावन की कुंज गली थी
फागुन की एक अनमोल घड़ी थी।
राधा की चोली हरी थी।
कान्हा की पिचकारी भरी थी।
राधा का आंचल जो जरा ढलका,
कान्हा का हाथ भी तब फिसला
राधा की चोली रंग से भरी थी।
लाल गुलाल से मांग भरी थी।
लाज से पलकें भी झुकीं थी।
सखियाँ खडी थी अलबेली बड़ी थी।
हंसी और ठिठोली भी जमी थी।
मैने भी ऐसी एक होली खेली थी।
सपने में कान्हा से जब में मिली थी।
मैने भी ऐसी एक होली खेली थी।
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