उम्मीदों भरी शाम आई है
नूतन वर्ष में उम्मीदों की नूतन छवि बनेगी
अबला नारी और बनेगी सबला अब
सीता नहीं बनेगी वह किसी राम से निष्काषित होने को
नहीं बनेगी वह द्रुपदी किसी दुशाशन से चीर हरन के लिए
राधा नहीं बनेगी वह अब जो कृष्ण से अंबियाही रह जाये
श्रापित अहल्या नहीं बनेगी किसी राम से तर जाने को
दान -दहेज की बस्तु बन नीलामी पर नहीं चढ़ेगी वह
सृजन की शक्ति का दायित्व लेकर जन्मी है वह
अपने कोमल हाथोँ के ममतामई स्पर्श से सुला दे अपने थके हारे शिशु को
उस नारी में शक्ति है असीम
नदिओं का मुख मोड़ दे वह
पहाड़ कांपे उसकी चित्कार सुनकर
उसके मौन को ना समझो उसकी कमजोरी
शक्ति रूपिणी सृजानकारिणी उसमें है दुर्गा उसमें है काली उसमे है ममतामई माँ समाई
बेटी , बहन ,पत्नी कितने ही उसने रूप धरे
हर रूप ने घर आँगन अलौकित कर डाले
ऐसा रौशन बना रहे हर घर हर आँगन
पहचान सकें हम अपने घर आँगन की शक्ति रूपिणी
नूतन वर्ष को दस्तक दे रही उम्मीदों भरी शाम आई है
नूतन वर्ष में उम्मीदों की नूतन छवि बनेगी
अबला नारी और बनेगी सबला अब
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