Saturday, November 18, 2017

मेरे सपने
मुझसे प्यार करते हैं मेरे सपने

मूंदी हुई पलकों के साये में पलते हैं मेरे सपने

परछाईं बनकर मेरा पीछा करते हैं मेरे सपने 

चीर की तरह दिन दिन बढ़ते हैं मेरे सपने 

मेरी बंद मुठ्ठी में से रेत की मानिंद फ़िसल जातें हैं मेरे सपने 

आँचल में पिरोए सितारों से दमकते रहते हैं मेरे सपने 

हर पल मुझे गुदगुदाते हैं मेरे सपने 

रात की तन्हाईओं में करवट लेते हैं मेरे सपने 

इसी आशा में जीती हूँ  मैं  कि  कभी तो सच होंगे मेरे सपने 

मुझसे प्यार करतें हैं मेरे सपने 

क्या कभी सच होते हैं  सपने 

आस ही ना टूटी जिसकी 

वक्त से ना थका जो 

सच हुए सपने उसके

हाँ वक्त के साथ चलते चलते कुछ सच हुए मेरे सपने 

कुछ गुम हुए वक्त के साथ चलते चलते  मेरे सपने 

शुक्राने की रात में हम शुक्राना करतें अपने उन सच हुए सपनों का 

भूला देते हैं उन गुम शुदा फ़िसलते अधूरे सपनों को आज की रात 

क्योंकि आज है शुक्राने की रात 

कल फ़िर एक नई सुबह लेकर आयेगी फ़िर नए सपनों की बारात 

हमें उस सुबह का है इंतज़ार

Monday, October 23, 2017

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

कितने ही तो दीप हमने तुमने मिलकर हैं जलाये

आओ मिलकर एक ऐसा दीप जलाएं

दूर करे जो सबके मन से अज्ञानता का अँधेरा

ज्ञान की रौशनी हो इतनी की सबको सत्कर्म के मार्ग पर चलना सिखा दे

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

सबने पहने नये परिधान

रानी ने  सलवार कमीज़ और दुपटटे में सूंदर छवि बनाई है

रज़िया के गरारे की साटन मखमल की कुर्ती से सजी है

दीपक समर के कुर्ते पजामे और अचकन की छवि निराली है

पजामे ,सलवार और ग़रारे के नयेगोटेदार हिजारबन्द का तो कहना ही क्या

चारों और ईद , दिवाली मुबारक़बाद के जैसे नारे से गूँज रहें हैं

नये परिधान पहनकर सबके चेहरे बेशकीमती मुस्कान बिखेर रहे हैं

आओ मिलकर कोई ऐसा परिधान बनाए जो विभिन परिधानों का  भेद मिटा दे

हर अर्ध नग्न और नग्नतन को ढक सके

राह चलती हर द्रुपदी का चीर बढ़ा दे

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

आई है दिवाली थाल सजा है धूप दीप और चंदन हवा को महका रहे हैं

दूर करे जो वतावरण में बसा प्रदूषण

आओ मिलकर हम ऐसा ही कोई चंदन बनायें आज

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

खील,बताशे पकवानों से थाल सजे हैं

आओ मिलकर कोई ऐसा पकवान बनायें मिटा सके सो जग के हर भूखे की भूख़

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती




 सबको साथ ले लो सफर बनजाएगा सुहाना

ट्रम्प हो या हो हिलेरी
हिलने वाले हम नहीं
अपनी कर्मभूमि पर डटे हुये हैं हम आज भी
डटे रहेंगे कल भी हम
जमे हुये हैं पावँ हमारे अंगद से भी भारी
हिला सका ना रावण जिसको
उन पावों को क्या हिला पायेंगें अब ट्रम्प
रावण तो महा ज्ञानी सूझ ना पाया उसको हल
फिर  टर्म ने अपनी बुद्धि का विस्तार हिलेरी के आँचल के परे नहीं दर्शाया
ऐसे ट्रम्प से क्या डरनाहमको
जो केवल चुनाव जितने के लालच में अपनी सारी शालीनता भूल कर कीचड़ उछाल गये हिलेरी पर
उसका कीचड़ तो जनता ने अपने आंसुओं से धो डाला
ट्रम्प अब जीत कर कौन सी नई हुकूमत खडी करेंगे ?
आओ मिल कर देखे हम
मेहनत करने वाले हाथों को ना देखा कभी भीख मांगते
फिर चिंता हम क्यों करें
न्याय संस्था की नींव पड़ी है गहरी सदिओं की ,उसको दो दिन टिकने वाले क्या हिला पायेंगे
अन्याय के खिलाफ उठने वाली हर आवाज में अपनी इतनी आवाजें हम मिला दें की
वह आवाज  उठे बनकर गूंज चिर दे जो आकाश का सीना भी
अन्याय करने की हिम्मत भी ना जुटा पाये कोई नेता
निज स्वार्थ से उठ जायो परमार्थ की बात करो
अकेले अकेले कहाँ चल दिये
सबको साथ ले लो सफर बनजाएगा सुहाना
मसालों  की जंग 

मसालों ने आपस में घोर जंग छेड़ दिया है।

नमक अपने सफ़ेद रंग पर इतरा रहा है अकड़ अकड़ कर सबको दूर भगा रहा है

हल्दी के पीलेपन से घबड़ा रहा है

काली मिर्ची की कालिमा को देख गुर्रा रहा है

लाल मिर्च की लालिमा से द्वेष में जल रहा है

अपना ही अस्तित्व बचाने ही होड़ में सब लड़ पड़े हैं 

मसालों ने आपस में घोर जंग छेड़ दिया है

द्वार पर बैठा अतिथि इस जंग से चिँतित सोच रहा है

यह तो आज उपवास का ही अन्देशा लग रहा है

चतुर गृहिणी पाक घर के शासन की बागडोर को संभालने को सुयोग्य है

मसालों के रोज़ रोज़ के इस जंग से त्रस्त्र हो रही है

सबको सबक सिखाने की ठान रही है

कहती है 

रंग भेद की जंग जो तुमने छेड़ी है आज अनजान नहीं हूँ मेँ उससे

रंग भेद की जंग तो सदियों से चली आ रही है

इसका तो अब अंत मैँ अपने ही पाक गृह में आज कर दूँगी

चेतावनी है तुम सबको बंद कर दो यह सदिओं का झगड़ा आज

क्योंकि झगड़े से आज तक जीता नहीं कोई

कितने ही सिकन्दर आये

कितने ही हिटलर दफ़न हुऐ 

 दुश्मन के नाम अनेक हैं मकसद वो ही पुराना

अपने ही घर में दहशत फैलाना

मुझको अपने पाक गृह में यह झगड़ा आज ही निपटाना है

चेतावनी है तुम सबको बंद कर दो यह सदिओं का झगड़ा आज

वरना खौलते हुऐ तेल में, उबलते पानी में किसका रंग, किसका आस्तित्व कब और कितना नष्ट हो जाये

इस बात की जानकारी मुझे भी नहीं है

क्योंकि रक्षक बन कर या ताकतवर बनकर जो वार तुम आज अपने सामने वाले पर कर रहे हो

उसकी ओर से एक दिन तीन वार तुमपर भी होने निश्चित हैं

क्योंकि प्रकृति अपना सन्तुलन खुद ढूँढ लेती है

हिंसा की प्रतिध्वनि हिंसा ही होगी

अपना अस्तित्व और उतपत्ती को कभी ना भूलना 

सब रंगो के मिलने से ही एक सफ़ेद किरण की उत्पत्ति होती है 

फ़िर सफ़ेद रंग अपने ही उदभाव को कैसे भूल  कर अकड़ दिखा रहा है 

अकड़ तो रावण की भी नहीं रही 

फिर तुम  रंगो की क्या बिसात

हमेशा याद रखो 

अपना अस्तित्व और उतपत्ती को कभी ना भूलना 

जिस मेल मिलाप से तुम्हारी उत्पत्ति हुई है वही मेल मिलाप  तुम्हारे लिये ज़रूरी है

फिर क्यों नहीं लेते तुम प्यार से काम

प्यार प्रेम और मेलजोल ही तुम्हारा अस्तित्व बचाने का एकमात्र रास्ता है 

मसालों ने आपस में घोर जंग छेड़ दिया है। 
A Circular Story

By Neena Wahi

First Thursday Writing Class October 2017

Before going to sleep

I make sure my phone is next to my bed.

I do not want to disturb people

by unexpected phone calls.

I get these calls in the middle of the night.

My old friend from Raleigh calls.

Her calls seem senseless. 

She feels on the verge of suicide or

something, she says.

I wonder why she thinks

her calls do any good.

The calls disturb my rest and my morning.

Each time the bell rings in the middle of the night,

I answer it. 

I wonder why she calls.


Friday, September 15, 2017

  मौसम आज सर्द हुआ है

मौसम आज सर्द हुआ है

हवा रुख़ी , ख़ुश्क हो चली है

कहाँ से चली आ रहीं हैं ये ख़ुश्क बेरहम हवाएँ

अभी तो ठंडी ठंडी कूल कूल आइसक्रीम की ठंडक जुबान से गयी नहीं और सर्द हवाएं दस्तक देने लगी

मौसम की बेरहम हवाएं कहीं दूर से आती जान पड़ती हैं 

जहाँ उन्मुक स्वरों को शान्त कर दिया गया और हवा सर्द हो गई 

लोग दोषी और दोष का प्रत्यारोपण करने में व्यस्त हो गए 

एक सत्ताधारी दूसरे पर दोष लगाकर भोली जनता को उलझाने में व्यस्त हो गए 

यहॉँ हवाएँ सर्द और बेरहम हो गयीं तो क्या 

एक उन्मुक्त स्वर शान्त हुआ तो क्या 

एक शख़्स चला गया तो क्या 

स्वतन्त्र आवाज़ों और विचारों को कभी दबाया जा सका है क्या 

यह तो वो ज्वाला है जो एक  चिता  की  लपटों से निकलती है और हर क्रन्तिकारी के सीने की दबी चिंगारी को सुलगा देती है 

एक क्रन्तिकारी सच की आवाज़ को ख़ामोश किया तो क्या किया 

उसकी विचारधारा और सिद्धांत तो उसकी चिता की लपटों से पूरी क़ायनात में बिख़र गये 

इन बिख़रे विचारोँ को समेट कर फ़िर नई ज्वाला उठेगी 

स्तधारीओं को चेतावनी है कितना भी नष्ट करो तुम संघर्ष तो जारी ही रहेगा मुखड़ा सिर्फ बदल जायेगा 

इन सर्द हवाओँ के साथ शीत हिम और बादल भी घुमड़ घुमड़ रहें हैं 

हिम से लिपटी क़ायनात भी इस स्वतन्त्र आवाजों के शोर को शायद अब दबा ना पायेगी 

 सर्द और ख़ुश्क हवाएं और बेरहमी से बहने लगी हैं अब

Tuesday, August 15, 2017

Change

A Dialogue Between A Bud And A Flower



Bud asks the flower, “Why are you so happy? An insect will come and suck all your nectar, and you will shed all your petals soon.
 
No one will remember your existence after a few days. Thinking of your mortality, I feel scared to open my petals.”
 
The flower replies, “Listen my dear, I know I will be no more after a couple of days but I am not scared to die.

I enjoy the smooth touch of the wind.
 
 I love the way the sun brightens my petals.
 
 And I love the way insect kisses me.
 
All these joys are enough to keep me happy for the moment, although these joys are not everlasting.
 
I am giving my nectar happily, because sacrificing my life on someone will make my life worth living.
 
Fate of life is death, so I am enjoying my moments of happiness.
 
I advise you to live in the moment because nothing is everlasting.”


Additional Images:

Sunday, May 14, 2017

धरती धरा  का सम्मान करें आओ मिलकर पेड़ लगायें 

आज धरा फिर खिल उठी है महक रही है हर बगिआ हर उपवन

फूल खिले हैं चहुं ओर पीले सफेद फूलों में अम्बर को छूने को होड़ लगी है जैंसे

सूरज की लालिमा से दहक रहीं हैं चटक  रही है चेरी की हर कली

कहीं गेंदा , कहीं चम्पा कहीं चमेली कहीं हरसिंगार महक रहा है

 कहीं मोगरा , कहीं गुलमोहर, कहीं  कनेर , कहीं गुलाब खिले हैं

लाल, पीले , नारंगी गुलाबी और कहीं बैंगनी फूल महक रहें हैं

धरती का हर कोना सुन्दर फूलों की छटा बिखेरता मुस्करा रहा है

हमारे संग धरा भी  मंद -मंद मुस्करा  रही है

रंग बिरंगे फूलों के मद्य हरे पेड़ों की छाया झलक रही है

मानो धरा की हरी चूनर पर प्रकृति ने लाल , पीले , नारंगी , बैंगनी नगीने जड़ दिये हों

कुछ गहरी कुछ हल्की पीली और भूरी शाखाएँ धरती से बाहर आने को मचल रहीं हैं

सूरज की लालिमा की आस में बैठी हैं शायद

यह भूरी हरी शाखाएँ मिलकर हमें हमारे जीवन के  जनम मरण का शाश्वत सत्य दर्शाती हैं

धरती के इस सुन्दर रूप पर हमारी सरकार ने अपनी कुदृष्टि डाल दी है और इस सुन्दरता को नष्ट करने चली है

लेकिन धरती की धरा का हर जन आज जागरूक है

इस सुंदरता को बक़रार रखने में जुटा है , तीन आर अपना रहा है

आज़   हम मिलकर अपनी धरा का सम्मान करें हम आओ मिलकर पेड लगाएँ

अपनी तंदरूस्ती को फिर पाएं अपनी संतति को खुशहाल वातावरण प्रदान करें

आओ मिलकर पेड़ लगायें और अपनी धरती धरा

को सम्मान दिलाएं।

Friday, May 12, 2017

सच से आज मुलाकात हो गई 

सच से आज मुलाकात हो गई 
 
कहीं घर के एक कोने में छुपकर बैठा था

मन में   सवाल ढेरों दबे हुए थे

समझ नहीं आ रहा था कहाँ से शुरुआत करूँ 

धूमिल , कांतिहीन स्वरुप देखकर ड़रते हुए मैंने पूछ ही लिया 

यह कैसा रूप बनाया है दर्शन भी दुर्लभ हो लिए हैं अब तो 

 सच ने कहा इस युग ने ही यह स्वरूप दिया है

 कभी झूठ ग्रहण बनकर मुझे आधा या कभी पूरा ही निगल भी जाता है 

मैंने तर्क किया  अभी भी सच लिखने वाले पत्रकार दीखते हैं 

सच ने  कहा सच लिखकर छप जाये और अगर छप भी जाये तो कितने लोग पढ़ पाते हैं 

मेरा कांतिवान रूप बहुत कम लोगों तक ही पहुँच पाता है

मैंने सोचा  सच ने सच ही कहा 

मैंने फिर तर्क किया हमारे नेता अपने वादों और इरादों के पक्के होते हैं 

सच बोलते हैं चुनाव के पहले हर समस्या हल करने का वादा भी नेता ही करते हैं 

अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा हर ओर गूँजता है 

सच ने कहा नारा तो अच्छा है अच्छे दिन भी चुनाव के बाद आते ही हैं 

मैंने पूछा  फिर समस्या क्या है ?

सच ने कहा समस्या भोली जनता की समझ मे है 

क्योंकि अच्छे दिन जनता के लिए नहीं खुद नेता के लिये आते हैं 

और जनता ठगी सी रह जाती है यह भी नहीं कह पाती 

की यह अगर ये अच्छे दिन हैं तो बराए मेहरबानी हमे हमारे पुराने बुरे दिन लौटा दीजिए 

मैंने फिर तर्क किया रिश्तों में सच जीते हैं हम अभी भी 

सास बहु, भाई -बहन , चाचा -भतीजी , जीजा -साली कितने ही रिश्ते अभी भी हमारी सभ्यता का हिस्सा बने हुए हैं 

सच ने कहा सच है पर इन रिश्तों में कब दरारें पड़ जाती हैं और रिश्तों में खोखलापन आ जाता है 

रिश्तेदारों को पता नहीं लगता और सच का दम निकल जाता है 

सास के हाथ की थपकी मे बहु को स्वार्थ दीखता है 

बहन की गरीबी भाई की अमीर शान शौकतभरी  जिंदगी पर धब्बा बन 

जाती है तो भाई बहन से नजरें चुरा लेता है , 

भतीजी का रूप जवानी कब चाचा का ईमान डोल कर भतीजी का दामन 

दागदार कर जाती है खुद सच को भी पता नहीं चलता और रिश्तों का सच 

रिश्तों के झूठ में दफ़न हो जाता है 

सच थका सा बोला रिश्तों की बात मत करो अपनों से लगे घाव बेगानों से 

लगे घावों से ज्यादा तकलीफ़देह होते हैं 

मैने आखिरी तर्क दिया 

रिश्तों में एक रिश्ता है जो सच जितना ही पाक है नेक है निस्वार्थ प्रेम से 

भरा है 

सच हैरान सा देख रहा है जानने की उत्सुकता से उत्साहित हो गया है 

मैने कहा 
 
माँ और बच्चों के रिश्तों में निस्वार्थ प्रेम  है सच है ऎसा पवित्र प्रेम जिससे 

भगवान को भी ईर्षा हो जाये 

सच का स्वरूप निखर गया फिर कांतिवान और निर्मल , निश्छल उज्ज्वल 

हो गया 

सच ने अपने इस जीवित रूप को नतमस्तक किया 

रिश्तों को जीवित रखने वाले इस रिश्ते को प्रणाम किया

आज फिर कांतिवान , उज्जवल निर्मल और निश्छल सच से मुलाकात हो 

ही गई

Saturday, March 25, 2017

वीर शहीदों की क़ुरबानी से रंगी धरा फिर रक्तरंजित हो उठी है

क्योंकि फिर आज हम शहीद दिवस मना रहें हैं  

शहीद दिवस मनाना केवल हमारी आदत ही ना बन जाये

शहीदों की कुर्बानी को याद करना भी केवल हमारी आदत ही ना बन जाये

ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत माता के दर्द को मह्सूस करने वाले शहीद

याद और नमन के सच्चे अधिकारी हैं

वक्त की माँग को पूरा करने के अपनी जिंदगी कुर्बान करने वाले वीर शहीदों की दस्ताने कभी कम ना हुई अफ़सोस की धरा उनके लिए छोटी हो जाती है

जब हम उनहे याद करने के लिए एक दिवस शहीद के आने की राह देखते हैं

दीपक जला कर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देकर अपना कर्तव्य की अतिश्री कर लेते हैं

आज़ादी मिलने के बाद भी किस किस का सपना कितना पूर्ण हुआ  

जिस आज़ादी के लिये शहीदों ने प्राण गवांये

क्या वह आज़ादी हर भारतवासी को नसीब हुई है

क्या हर भारतवासी  को  दो वक्त की रोटी नसीब हुई है

तन पर कपड़ा सिर पर छत सबको ना नसीब हुई तो कैसी आज़ादी पाई हमने

वीर शहीदों की कुर्बानी का कर्ज़ आज हमपर है

यह कर्ज़ चुकाना हर भारतवासी का फ़र्ज़ है आज 
आँसू बहाना आज काफ़ी नहीं होगा

शर्म से झुके भारत माता के मस्तिक की शर्म हमे शर्मसार कर दे इससे पहले हम जाग जाएँ

उठ कर देखें

सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लाये 

ऐसा भारत जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ फिर बसने लगें

सबको रोटी मिले और चारों और प्रेम की बंसी बजाता सूरज निकले हर रोज

आओ मिलकर सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लाये

वीर शहीदों की कुर्बानी का क़र्ज़ उतारे

आज़ शहीद दिवस में मिलकर यह शपथ लें

व्यर्थ ना होगी कुर्बानी उनकी

उनके सपनोँ का भारत मिलकर हम बनाएंगे

सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लायेंगे हम यह वादा रहा 



Friday, February 17, 2017

चींटियॉ कलाइयों वे ट्रम्प तेरी चींटियॉ कलाइयों वे

चींटियॉ कलाइयों वे ट्रम्प तेरी चींटियॉ कलाइयों वे

मत कर काला इनको तू अपनी काली करतूतों से 

चार दिनों में ही हिला दी तूने पूरी सत्ता 

करना था जो सो किया नहीं आतंकी बन बैठा है तू 

अपनी गोरी कौम को खुशहाल करने की तूती बजा रहा है तू 

काले भूरे हरे नीले  सबको अपनी गोरी कौम का दुश्मन समझ रहा है तू 

हर रंगीन सख्श को देश निकाला दे रहा है तू 

भूल रहा क्या तू  हर रंगीन सख्श को बना गुलाम सेवा करवाई गोरों ने 

ऐसा सेवा के आदि क्या रह पाएंगे खुशहाल अकेले 

वैसे भी हर गोरा एकांत से घबरा कर पूरब की संस्कृति अपनाने को तरस रहा 

ओने पौने देकर कहीं योगा और कहीं धयान में धूनी रमा रहा 

हर विदेशी बस्तुओं को परदेशों से मंगा रहा 

ऐसी कौन सी बस्तु है जो गोरों ने अपने गोरे हाथों से बनाई है 

काली ना हुई कलाइयाँ कालों की बना बना कर भर डाला बाज़ार 

गोरा पैसे फ़ेंक खरीद रहा सब 

सिखला दो तुम अपनी गोरी कौम को स्वावलम्बन का पाठ 

रोक सको तो रोक लो उनको पूरब की संस्कृति अपनाने से 

नहीं तो मान लो अपनी हार और जियो और जीने दो सबको हमवतनों  की तरह इस धरती पर 

कदर करो उन सांसो की जो अपना खून पसीना बहा कर अपने जीने के साधन जुटाने में ही 

टूट रही हैं टूट टूट कर इस वतन से जुड़ने का प्रयास कर रहीं हैं

चींटियॉ कलाइयों वे ट्रम्प तेरी चींटियॉ कलाइयों वे

मत कर काला इनको तू अपनी काली करतूतों से 





Friday, January 20, 2017



हर वक्त बदल जाता है बदलना हमें नहीं भाता है
हर वक्त बदल जाता है 
बदलना हमें नहीं भाता है 
अपना आरामदेह कोना ही हमें भाता है 
बदलना हमें नहीं भाता है
 हर नयापन हमें डरा जाता है 
अन्होनि आशंकायों से हमारा पुराना नाता है 
बदलना हमें नहीं भाता है 
हर वक्त बदल जाता है 
ऋतुएँ ने बदनलना नहीं छोड़ा 
पेड़ों के बदले परिधानों संग हमने अपनी पौशाकों को हर बार बदला है 
फिर बदलना हमें क्यों नहीं भाता है 
दिन भर रौशनी बिखेरने के बाद सूरज भी सो जाता है 
हर वक्त बदल जाता है 
बदलना हमे क्यों नहीं भाता है 
हर वक्त बदल जाता है 
सत्ता भी बदल गई है आज 
हम डरे सहमे क्यों हैं 
अधिकारों की वही पुरानी जंग है 
जंग आज भी जारी है 
इस जंग पर डर और आशंकाओं का जंग ना लगने देंगे हम कभी
क्यों हम अपना आरामदेह कोना छिन जाने से सहम रहे है 
जो कोना हमारा अस्तित्व है उसे कोई सत्ता छिन सके 
ऐसे भी कमज़ोर नहीं हुए है हम 
अपने अधिकारों को क़ायम रखना हमें आता है  
अपने अस्तिव को किसी भी सत्ता के आगे झुकने नहीं देंगे 
जंग आज भी जारी है 
सत्ता बदले बदले मौसम हम हम ही हैं हम ही रहेंगे