वीर शहीदों की क़ुरबानी से रंगी धरा फिर रक्तरंजित हो उठी है
शहीद दिवस मनाना केवल हमारी आदत ही ना बन जाये
शहीदों की कुर्बानी को याद करना भी केवल हमारी आदत ही ना बन जाये
ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत माता के दर्द को मह्सूस करने वाले शहीद
याद और नमन के सच्चे अधिकारी हैं
वक्त की माँग को पूरा करने के अपनी जिंदगी कुर्बान करने वाले वीर शहीदों की दस्ताने कभी कम ना हुई अफ़सोस की धरा उनके लिए छोटी हो जाती है
जब हम उनहे याद करने के लिए एक दिवस शहीद के आने की राह देखते हैं
दीपक जला कर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देकर अपना कर्तव्य की अतिश्री कर लेते हैं
आज़ादी मिलने के बाद भी किस किस का सपना कितना पूर्ण हुआ
जिस आज़ादी के लिये शहीदों ने प्राण गवांये
क्या वह आज़ादी हर भारतवासी को नसीब हुई है
क्या हर भारतवासी को दो वक्त की रोटी नसीब हुई है
तन पर कपड़ा सिर पर छत सबको ना नसीब हुई तो कैसी आज़ादी पाई हमने
वीर शहीदों की कुर्बानी का कर्ज़ आज हमपर है
यह कर्ज़ चुकाना हर भारतवासी का फ़र्ज़ है आज
आँसू बहाना आज काफ़ी नहीं होगा
शर्म से झुके भारत माता के मस्तिक की शर्म हमे शर्मसार कर दे इससे पहले हम जाग जाएँ
उठ कर देखें
सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लाये
ऐसा भारत जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ फिर बसने लगें
सबको रोटी मिले और चारों और प्रेम की बंसी बजाता सूरज निकले हर रोज
आओ मिलकर सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लाये
वीर शहीदों की कुर्बानी का क़र्ज़ उतारे
आज़ शहीद दिवस में मिलकर यह शपथ लें
व्यर्थ ना होगी कुर्बानी उनकी
उनके सपनोँ का भारत मिलकर हम बनाएंगे
सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लायेंगे हम यह वादा रहा
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