आई है दिवाली सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो
कितने ही तो दीप हमने तुमने मिलकर हैं जलाये
आओ मिलकर एक ऐसा दीप जलाएं
दूर करे जो सबके मन से अज्ञानता का अँधेरा
ज्ञान की रौशनी हो इतनी की सबको सत्कर्म के मार्ग पर चलना सिखा दे
आई है दिवाली सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो
आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती
सबने पहने नये परिधान
रानी ने सलवार कमीज़ और दुपटटे में सूंदर छवि बनाई है
रज़िया के गरारे की साटन मखमल की कुर्ती से सजी है
दीपक समर के कुर्ते पजामे और अचकन की छवि निराली है
पजामे ,सलवार और ग़रारे के नयेगोटेदार हिजारबन्द का तो कहना ही क्या
चारों और ईद , दिवाली मुबारक़बाद के जैसे नारे से गूँज रहें हैं
नये परिधान पहनकर सबके चेहरे बेशकीमती मुस्कान बिखेर रहे हैं
आओ मिलकर कोई ऐसा परिधान बनाए जो विभिन परिधानों का भेद मिटा दे
हर अर्ध नग्न और नग्नतन को ढक सके
राह चलती हर द्रुपदी का चीर बढ़ा दे
आई है दिवाली सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो
आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती
आई है दिवाली थाल सजा है धूप दीप और चंदन हवा को महका रहे हैं
दूर करे जो वतावरण में बसा प्रदूषण
आओ मिलकर हम ऐसा ही कोई चंदन बनायें आज
आई है दिवाली सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो
आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती
खील,बताशे पकवानों से थाल सजे हैं
आओ मिलकर कोई ऐसा पकवान बनायें मिटा सके सो जग के हर भूखे की भूख़
आई है दिवाली सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो
आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती
1 comment:
Recited on Diwali Eid Dinner on 10/20/2016 and Subdrift 10/20/2017
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