हर सुहानी सुबह में तुम्हारे आगमन का इंतजार करतें हैं हम।
पते पर ठहरी हुई शबनम की एक बूंद के टपकने का इंतजार करतें हैं हम।
तुम्हारे आगमन का इंतजार करतें हैं हम।
सावन की झडी के थमने का इंतजार करतें हैं हम।
तुम्हारे आगमन का इंतजार करतें हैं हम।
बादलों के बीच से सूरज के झांकने का इंतजार करतें हैं हम।
तुम्हारे आगमन का इंतजार करतें हैं हम।
आँखों की कोरों में अटके हुए दो आंसुओं के टपकने का इंतजार करतें हैं हम।
तुम्हारे आगमन का इंतजार करतें हैं हम।
हां
कभी न लौंट कर आने वाले बेदर्दी का इंतजार करतें हैं हम।
तुम्हारे आगमन का इंतजार करतें हैं हम।
Monday, October 6, 2008
फिर एक साँझ घिर आयी है.
फिर एक साँझ घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श की याद आयी है।
तन मन प्रेम रस से भिगो लाई है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर एक साँझ घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
न्यनों में न थमने वाली बरखा घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
रोते हुए होठों पे हंसी आयी है,
जब तुम्हारी सूरत झरोखे से नजर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर एक साँझ घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श की याद आयी है।
तन मन प्रेम रस से भिगो लाई है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर एक साँझ घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
न्यनों में न थमने वाली बरखा घिर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
रोते हुए होठों पे हंसी आयी है,
जब तुम्हारी सूरत झरोखे से नजर आयी है।
फिर तुम्हारी याद आयी है।
फिर एक साँझ घिर आयी है।
Wednesday, April 23, 2008
मेरा अतीत मुझसे छल करता है
मेरा अतीत मुझसे छल करता हैअतीत यह कह कर विदा हुआ मुझसे की फिर कभी न मिलूंगा
मिल भी गया तो पुकारूँगा नही
पीछे मुड़कर मत देखना ।
मैं-मैं तो वकत की चट्टान मैं दफ़न हुआ हूं,
हैरान हूं , फिर क्यों हर मोड़ पर
वह मुझसे टकरा ही जाता है ,
घायल करके मुझे फिर
अलविदा कहने का छल करता है।
मेरा अतीत मुझसे छल करता है ।
मैं भविष्य के सपने पिरोती हूं
नए रिश्ते जोड़ने का यतन करती हूं ,
फिर कोई अजनबी भीड़ के बीच मे से
अतीत का लिबास पहन कर झांकता है,
मेरा अतीत मुझसे छल करता है ।
अतीत की इस आंख -मिचोली का खेल
भविष्य के दरवाजे बंद करता है
तब मैं अतीत को दरबान बना कर
अपने भविष्य के नए द्वार में
भरसक घुसने का प्रयास करती हूं
मैं अतीत के छल को निष्क्रिय करती हूं
अतीत के छल से छलती हुयी मैं
शायद स्वयं से छली जा रही हूँ ।
मेरा अतीत मुझसे छल करता है ।
एक कली का फूल से वार्तालाप
फूलों के एक गुलशन मेंएक डरी, सहमी, सकुचाई सी कली
एक फूल से यूं बोली , "बहन, तुम अपने शरीर का
मकरंद लुटा कर भी कैसे खिली खिली सी दिखती हो ?
सम्पूर्ण रस निचुड जाने पर
हवा का एक हल्का सा झोंका
तुम्हारा अस्तित्व मिटा देगा
कैसे सह लोगी अपना ही अंत ?
मैं-मैं तो इस डर से सिहरी सी
अपनी पलकें नहीं खोल पा रहीं हूं ।"
इस पर फूल ने उत्तर दिया,
"मेरी प्यारी सखी,सुनो और गुनों,
मिटने का ही दूसरा नाम है जीवन
लुटने का ही दूसरा नाम है परोपकार ।
एक बार, बस एक बार
देखो अपने पंखुरिया खोल कर
सूरज की सुनहरी किरणों का स्पर्श
सहलायेगा तुम्हारी कोमल पंखुरिओं को
ठंडी -ठंडी बयार की शीतलता
हौले -हौले सहरायेगी तुम्हे
इस क्षण भर के आनंद से रोमांचित हो कर
तुम्हारा झूमना--- शेष जीवन के अस्तित्व के
मिटने के लिए भरपूर है
क्योंकि "निशि" कहे खुशिओं के पल तो हैं क्षणिक
मिटने के लिए जीवन होते हैं तनिक
Tuesday, April 8, 2008
Sunday, March 2, 2008
Saturday, February 23, 2008
Saturday, January 5, 2008
तलाश
ख़ुशी की तलाश में
जा पहुंचे हम
गुलाब के एक गुलशन में
गुलाब कि खुशबु में मदहोश हम
ये भी जान न पाए
कब दामन हमारा
काँटों से उलझ कर रह गया
जा पहुंचे हम
गुलाब के एक गुलशन में
गुलाब कि खुशबु में मदहोश हम
ये भी जान न पाए
कब दामन हमारा
काँटों से उलझ कर रह गया
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