Monday, October 23, 2017

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

कितने ही तो दीप हमने तुमने मिलकर हैं जलाये

आओ मिलकर एक ऐसा दीप जलाएं

दूर करे जो सबके मन से अज्ञानता का अँधेरा

ज्ञान की रौशनी हो इतनी की सबको सत्कर्म के मार्ग पर चलना सिखा दे

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

सबने पहने नये परिधान

रानी ने  सलवार कमीज़ और दुपटटे में सूंदर छवि बनाई है

रज़िया के गरारे की साटन मखमल की कुर्ती से सजी है

दीपक समर के कुर्ते पजामे और अचकन की छवि निराली है

पजामे ,सलवार और ग़रारे के नयेगोटेदार हिजारबन्द का तो कहना ही क्या

चारों और ईद , दिवाली मुबारक़बाद के जैसे नारे से गूँज रहें हैं

नये परिधान पहनकर सबके चेहरे बेशकीमती मुस्कान बिखेर रहे हैं

आओ मिलकर कोई ऐसा परिधान बनाए जो विभिन परिधानों का  भेद मिटा दे

हर अर्ध नग्न और नग्नतन को ढक सके

राह चलती हर द्रुपदी का चीर बढ़ा दे

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

आई है दिवाली थाल सजा है धूप दीप और चंदन हवा को महका रहे हैं

दूर करे जो वतावरण में बसा प्रदूषण

आओ मिलकर हम ऐसा ही कोई चंदन बनायें आज

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती

खील,बताशे पकवानों से थाल सजे हैं

आओ मिलकर कोई ऐसा पकवान बनायें मिटा सके सो जग के हर भूखे की भूख़

आई है दिवाली   सदभाना , प्रेम और सहचर्य के दीप जलालो

आई है दीवाली जगमग दीप चहुँ ओर जलाती




 सबको साथ ले लो सफर बनजाएगा सुहाना

ट्रम्प हो या हो हिलेरी
हिलने वाले हम नहीं
अपनी कर्मभूमि पर डटे हुये हैं हम आज भी
डटे रहेंगे कल भी हम
जमे हुये हैं पावँ हमारे अंगद से भी भारी
हिला सका ना रावण जिसको
उन पावों को क्या हिला पायेंगें अब ट्रम्प
रावण तो महा ज्ञानी सूझ ना पाया उसको हल
फिर  टर्म ने अपनी बुद्धि का विस्तार हिलेरी के आँचल के परे नहीं दर्शाया
ऐसे ट्रम्प से क्या डरनाहमको
जो केवल चुनाव जितने के लालच में अपनी सारी शालीनता भूल कर कीचड़ उछाल गये हिलेरी पर
उसका कीचड़ तो जनता ने अपने आंसुओं से धो डाला
ट्रम्प अब जीत कर कौन सी नई हुकूमत खडी करेंगे ?
आओ मिल कर देखे हम
मेहनत करने वाले हाथों को ना देखा कभी भीख मांगते
फिर चिंता हम क्यों करें
न्याय संस्था की नींव पड़ी है गहरी सदिओं की ,उसको दो दिन टिकने वाले क्या हिला पायेंगे
अन्याय के खिलाफ उठने वाली हर आवाज में अपनी इतनी आवाजें हम मिला दें की
वह आवाज  उठे बनकर गूंज चिर दे जो आकाश का सीना भी
अन्याय करने की हिम्मत भी ना जुटा पाये कोई नेता
निज स्वार्थ से उठ जायो परमार्थ की बात करो
अकेले अकेले कहाँ चल दिये
सबको साथ ले लो सफर बनजाएगा सुहाना
मसालों  की जंग 

मसालों ने आपस में घोर जंग छेड़ दिया है।

नमक अपने सफ़ेद रंग पर इतरा रहा है अकड़ अकड़ कर सबको दूर भगा रहा है

हल्दी के पीलेपन से घबड़ा रहा है

काली मिर्ची की कालिमा को देख गुर्रा रहा है

लाल मिर्च की लालिमा से द्वेष में जल रहा है

अपना ही अस्तित्व बचाने ही होड़ में सब लड़ पड़े हैं 

मसालों ने आपस में घोर जंग छेड़ दिया है

द्वार पर बैठा अतिथि इस जंग से चिँतित सोच रहा है

यह तो आज उपवास का ही अन्देशा लग रहा है

चतुर गृहिणी पाक घर के शासन की बागडोर को संभालने को सुयोग्य है

मसालों के रोज़ रोज़ के इस जंग से त्रस्त्र हो रही है

सबको सबक सिखाने की ठान रही है

कहती है 

रंग भेद की जंग जो तुमने छेड़ी है आज अनजान नहीं हूँ मेँ उससे

रंग भेद की जंग तो सदियों से चली आ रही है

इसका तो अब अंत मैँ अपने ही पाक गृह में आज कर दूँगी

चेतावनी है तुम सबको बंद कर दो यह सदिओं का झगड़ा आज

क्योंकि झगड़े से आज तक जीता नहीं कोई

कितने ही सिकन्दर आये

कितने ही हिटलर दफ़न हुऐ 

 दुश्मन के नाम अनेक हैं मकसद वो ही पुराना

अपने ही घर में दहशत फैलाना

मुझको अपने पाक गृह में यह झगड़ा आज ही निपटाना है

चेतावनी है तुम सबको बंद कर दो यह सदिओं का झगड़ा आज

वरना खौलते हुऐ तेल में, उबलते पानी में किसका रंग, किसका आस्तित्व कब और कितना नष्ट हो जाये

इस बात की जानकारी मुझे भी नहीं है

क्योंकि रक्षक बन कर या ताकतवर बनकर जो वार तुम आज अपने सामने वाले पर कर रहे हो

उसकी ओर से एक दिन तीन वार तुमपर भी होने निश्चित हैं

क्योंकि प्रकृति अपना सन्तुलन खुद ढूँढ लेती है

हिंसा की प्रतिध्वनि हिंसा ही होगी

अपना अस्तित्व और उतपत्ती को कभी ना भूलना 

सब रंगो के मिलने से ही एक सफ़ेद किरण की उत्पत्ति होती है 

फ़िर सफ़ेद रंग अपने ही उदभाव को कैसे भूल  कर अकड़ दिखा रहा है 

अकड़ तो रावण की भी नहीं रही 

फिर तुम  रंगो की क्या बिसात

हमेशा याद रखो 

अपना अस्तित्व और उतपत्ती को कभी ना भूलना 

जिस मेल मिलाप से तुम्हारी उत्पत्ति हुई है वही मेल मिलाप  तुम्हारे लिये ज़रूरी है

फिर क्यों नहीं लेते तुम प्यार से काम

प्यार प्रेम और मेलजोल ही तुम्हारा अस्तित्व बचाने का एकमात्र रास्ता है 

मसालों ने आपस में घोर जंग छेड़ दिया है। 
A Circular Story

By Neena Wahi

First Thursday Writing Class October 2017

Before going to sleep

I make sure my phone is next to my bed.

I do not want to disturb people

by unexpected phone calls.

I get these calls in the middle of the night.

My old friend from Raleigh calls.

Her calls seem senseless. 

She feels on the verge of suicide or

something, she says.

I wonder why she thinks

her calls do any good.

The calls disturb my rest and my morning.

Each time the bell rings in the middle of the night,

I answer it. 

I wonder why she calls.