तरक़्क़ी और सुविधा भरा जीवन
घर में सुख सुविधाएं भरपूर हैं
दूरभाष ने दूरिओं मिटा दी भरपूर हैं
सात समुन्दर पार झट से सम्पर्क बना है
घंटो वार्तालाप हुआ दिल सूना का सूना रह गया
खुशबूदार गुलाबी खतों का सिलसिला बंद हुआ
समय कम और दिल की दूरियाँ लम्बी हो गईं
ख़त में लिखे शब्द दिल के तार छेड़ छेड़ जाते थे
डाकिये के इंतजार में नयन बिछ बिछ जाते थे
किताबों में दबे सूखे फूल रातों की नींद उड़ा जाते थे
वो कोमल भावनाएँ हमारी तरक़्क़ी को भेंट हो गईं
शादी ब्याह, मुंडन , उपनयन , वर्षगांठ में ढोलक की थाप नहीं सुनने को मिलती है
सप्ताहों की तैयारी , हलवाई का आँगन में डेरा जमाने का समय नहीं रहा है
आपसी हंसी ठिठोली की जगह डीजे ने ले ली है
गली मुहल्ला मिलकर जो रौनक लगाता था
वो गलियाँ सूनी हो गईं बड़े पॉँच सितारा होटल सजे पड़े हैं
ख़ुशी के अवसर तो ढेरों आते हैं
पर उत्साह और उल्लास की भावनाएँ लुप्त हो गईं है
टीवी ,अन्तरजाल , वेब बैठक की शान बने हैं
दुनिया के हर कोने की ख़बर मिल जाती है
ज्ञान के हर प्र्शन का उत्तर गूगल मास्टर से मिल जाता है
लेकिन कोई गूगल आपको आपके परिवार के सदस्यों का हाल नहीं बता सकता है
सारी सुख सुबिधा जुटाने में परिवार इतना व्यस्त है कि किसी के पास दूसरे के लिए समय नहीं है
घर बना लिया तो छुट्टियाँ बिताने के लिये समुन्दर के किनारे एक शिकारा चाहिए
गाड़ी चाहिए , गाड़ी है तो हवाईजहाज़ चाहिए
चाहिए चाहिए सब कुछ चाहिए
हर सुविधा पाने की होड़ में हमारे बच्चों का रसभरा बचपन बीत गया
लेकिन हम उनको ऊँगली पकड़ कर चला नहीं पाए
उनके साथ बैठ कर उनकी तोतली बोली नहीं सुन पाए
और वो कब घर की दलहीज पर जवान हो गए गूगल को भी नहीं मालूम
प्यार और संवेदना रहित माहौल में पले इन बच्चों से आपने सारी सुविधायें देकर भी कुछ नहीं दिया
अपना समय , अपना दुलार दादी नानी की थपकियाँ नहीं दी
बचपन को रंगीन करने वाली पुस्तकें नहीं दी
नानी दादी की संस्कार भरे आँचल की छाँव नहीं दी
इस माहौल में पले बच्चे आपको वही देंगे जो आपने उन्हें दिया
भावनाहीन, भौतिकवादी , व्यवहारिक सब आज जी रहें है
आपकी जवानी की उत्साह भरी शामें नोट गिनने में गुजर गईं
ऑंगन में प्रेम की कितनी बरसते हुईं पर आप रीते ही रह गए।
वक्त गुजर गुजर कर हाथ से छू मंतर हुआ गूगल को भी पता नहीं चला
झाड़ू बुहारना , कपड़े धोना , सब मशीन ने सुलभ कर दिया
व्यायाम करने वाला हर काम मशीन करती है क्योंकि कसरत के लिए जिम है
बढ़ा हुआ वज़न किस जिम में कम होगा ये गूगल को भी नहीं मालूम है
कुकर सीटी बजा बजा कर दाल पका देता है
माइक्रोवेव चावल , सब्ज़ी सब पल में ही बना देता है
लेकिन भोजन में वोह जायका और पौष्टिकता कहाँ जो चूल्हे की धीमी आँच पर पकी दाल में है
तरक़्क़ी से आपको मिली सुविधाएँ बेशुमार है
इस तरक़्क़ी की कीमत चुकाते चुकाते आपने अपने दिमाग़ और समय का उपयोग किया
लेकिन आपके दिल की भवनाएँ कब सुप्त हो गईं यह गूगल को भी पता नही चला
तरक़्क़ी ने सुविधा जीवन में भर कर आपकी भावनाओं का सौदा बड़े महंगे में किया है