शाहीन बाग की वीरांगनायें
हमारी प्यारी सरकार को आज शाहीन बाग़ खटकता है
शाहीन बाग में बैठी वीरांगनाओं की गुहार पूरे देश में गूँज उठी है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है
यह जंग नहीं यह तो संविधान में अंकित हक़ की पुकार है
संविधान कहता है कि भारत में हर धर्म के व्यक्ति को सम्मान से जीने का हक है
जहाँ हमारे शीश पर लगे तिलक की शोभा टोपी से सजती है
उस शीश को तुम नग्न ना करो भाई को भाई से जुदा ना करो
जिस थाली में हलुआ पूरी के संग हलीम और सेवाईओं का नाम नहीं
उस घर में राम रहीम नहीं
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है
यह जंग नहीं हर इन्सान की हक की पुकार है
सबको रुलाने वाला प्याज़ आज रो रहा है
पोहो से जुदा हो कर दुःखी हो रहा है
कहता है अबके बिछड़े कब मिलेंगे जैसे सूखे फूल मिलें किताबों में
रोटी सूख कर प्याज़ को पुकार रही है
के घर कब आओगे तुम बिन सूना थाल हमारा
प्याज़ का आश्वाशन है मैं वापस आऊंगा
रोटी के आंसुओं से भीगी हरी मिर्ची खो बैठी अपना तीखापन
ऐसी बेस्वाद थाली ही एक ग़रीब के लिये जुटा पाई है सरकार हमारी सत्तहतर सालों में
लानत नहीं तो और क्या है यह
भले ही सरकार चाँद पर अपना यान भेज देने की सामर्थ हासिल कर ले
पर अनाज का उत्पादन करने वाला किसान जमीन बेचने पर मजबूर हो जाये तो ऐसी आज़ादी बेकार है
पेड़ और खेत खलियान नष्ट कर बड़े बड़े मॉल खोल देना ऐसी तरक्की बेकार है
आम जनता और उनकी जरूरतें नजरअंदाज करना ऐसी सरकार बेकार है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है
हमारा अस्तित्व किसी कागज़ के टुकड़े का मोहताज़ नहीं है।
वोह तो हमारे ख़ून और पसीने के रूप में इस मिटटी में घुल कर उसे सींच रहा है
उस मिटटी को कुरेद कर भेद भाव और नफ़रत की आंधी ऐसी ना उड़ाओ कि
अचकन कुरता धोती टोपी सब चटक चटक कर तार तार हो जाएं
सलवार और गरारा अलग रास्ते चल पडे तो बेचारा हिजारबन्द सोच में पड़ जायेगा की मैं इधर जायूँ या उधर जायूँ
क्यूँ ना बीच में ही मर जायूँ
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है
नोटबंदी अभियान में भी किसी अंबानी और अडानी को सरकार नहीं पकड़ पाई है
बल्कि गरीब जनता ही पीसी गई है
और गुरबत में काम आने वाली लछमि को श्री हीन कर दिया है
ग़रीब जनता को इतना भी ना पीसो की प्रकृति भी अपना संतुलन खो बैठे
और सब कुछ उलट पुलट कर नष्ट हो जाये
कहीं पूरा देश ही शाहीन बाग में ना बदल जाये।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है\
देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है