Tuesday, March 10, 2020

 शाहीन बाग  की वीरांगनायें 
 
आज हमारी प्यारी दिल्ली में हिंदुस्तान का दिल धड़कता है

हमारी प्यारी सरकार को आज शाहीन बाग़ खटकता है

 शाहीन बाग में बैठी वीरांगनाओं की गुहार पूरे देश में गूँज उठी है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है  

यह जंग नहीं यह तो संविधान में अंकित हक़ की पुकार है

संविधान कहता है कि भारत में हर धर्म के व्यक्ति को सम्मान से जीने का हक है 

जहाँ हमारे शीश पर लगे तिलक की शोभा टोपी से सजती है

उस शीश को तुम नग्न ना करो भाई को भाई से जुदा ना करो

जिस थाली में हलुआ पूरी के संग हलीम और सेवाईओं का नाम नहीं

उस घर  में राम रहीम नहीं

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है

यह जंग नहीं हर इन्सान की हक की पुकार है

सबको रुलाने वाला प्याज़ आज रो रहा है

पोहो से जुदा हो कर दुःखी हो रहा है

कहता है अबके बिछड़े कब मिलेंगे जैसे सूखे फूल मिलें किताबों में  

रोटी सूख कर प्याज़ को पुकार रही है

के घर कब आओगे तुम बिन सूना थाल हमारा

प्याज़ का आश्वाशन है मैं वापस आऊंगा

रोटी के आंसुओं से भीगी हरी मिर्ची खो बैठी अपना तीखापन

ऐसी बेस्वाद थाली ही एक ग़रीब के लिये जुटा पाई है सरकार हमारी सत्तहतर सालों में

लानत नहीं तो और क्या है यह

भले ही सरकार चाँद पर अपना यान भेज देने की सामर्थ हासिल कर ले

पर अनाज का उत्पादन करने वाला किसान जमीन बेचने पर मजबूर हो जाये तो ऐसी  आज़ादी  बेकार है 

पेड़ और खेत खलियान नष्ट कर बड़े बड़े मॉल खोल देना ऐसी तरक्की बेकार है 

आम जनता और उनकी जरूरतें नजरअंदाज करना ऐसी  सरकार बेकार है 

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है

हमारा अस्तित्व किसी कागज़ के टुकड़े का मोहताज़ नहीं है।

वोह तो हमारे ख़ून और पसीने के रूप में इस मिटटी में घुल कर उसे सींच रहा है 

उस मिटटी को कुरेद कर भेद भाव और नफ़रत की आंधी ऐसी ना उड़ाओ कि

अचकन कुरता धोती टोपी सब चटक चटक  कर तार तार हो जाएं

सलवार और गरारा अलग रास्ते चल पडे तो बेचारा हिजारबन्द सोच में पड़ जायेगा की मैं इधर जायूँ या उधर जायूँ
क्यूँ ना बीच में ही मर जायूँ

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है

नोटबंदी अभियान में भी किसी अंबानी और अडानी को सरकार नहीं पकड़ पाई है

बल्कि गरीब जनता ही पीसी गई है

और गुरबत में काम आने वाली लछमि को श्री हीन कर दिया है

ग़रीब जनता को इतना भी ना पीसो की प्रकृति भी अपना संतुलन खो बैठे
और सब कुछ उलट पुलट कर नष्ट हो जाये

 कहीं पूरा देश ही शाहीन बाग में ना बदल जाये।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है\

देखना है ज़ोर कितना बाजुए सरकार में है