एक उदास शाम
फिर एक उदास शाम को
किसके कदमों की आहट
हौले से अरमानों की कश्ती में
तमन्नाओं को हिचकोले दे जाती है
‘नीशी’ को कोई आवाज़ दे कर कह दे
कि यह एक सपना नहीं हकीकत है
Tuesday, August 17, 2010
दर्द में हँसी
दर्द में हँसी
मेरी प्यारी सखी तुम्हारे इसरार पर
कौन सा गीत सुनाऊँ ?
ज़ख्मों से छलनी इस दिल से
आह नहीं निकलती
हैरान है ‘नीशी’ कि
ये हँसी के झरने कैसे फूट रहे हैं ?
शायद ये दिल शिव का वरदान पा गया है
जो दर्द को ठहाकों में वदल गया है
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