दादी नहीं सुनाती दीवाली की कहानी
दादी नहीं सुनाती दीवाली की कहानी
क्योंकि नहीं देखने को मिलती चारों भाईओं की जोड़ी किसी भी घर में अब
अटूट प्रेम का बंधन टूटा , हार-जीत की होड़ लगी है सबमें
मंथरा की कूटनीति की कुटिलता दिखती है हर घर में
कैकई की डाह जल रही है हर घर मेँ, हर गली मेँ
लेकिन कहीं कहीं ही मिलती है कौशल्या और सुमित्रा माता की ममता की छईयाँ
स्वार्थों के घेरे मेँ बंध कर दम तोड़ रहें हैं सब रिश्ते प्यारे
भगवान राम बनवास जाने को तैयार खड़े हैँ न्यारे
पर नहीँ दिखती है कहीँ पर भी लक्ष्मण की निष्ठा और भक्ति प्यारे
सीता सहते-सहते थक गई है और बनवास से पहले ही अलग हुई है अपने \
प्यारे राम से
दादी नहीं सुनाती दीवाली की कहानी
क्योँकि राम लक्ष्मण -सीता की कोई भी एक जोड़ी बनवास से लौट कर
अयोध्या की ओर नहीं आती
आस देखती बैठी है अब दादी
दादी नहीं सुनाती दिवाली की वही पुरानी कहानी अब
दादी लिखेगी एक नयी कहानी दिवाली की अब
देगी सीता को एक नई पहचान वो अब
खड्ग , खप्पर धार कर सीता लेगी एक नया रूप अब
वोह बनेगी दुर्गा , चंडी और महाकाली अब
नहीं करेगी अनुगमन अपने राम का अब
बनाएगी अपने लिये नयी राहें वो अब
अपने चारों और पनपने वाले हर रावण का संहार करेगी स्वयं वो अब
नहीं तकेंगी राह वो किसी मर्यादा पुरूषोत्तम राम के आने की अब
क्योंकि नहीं मंजूर उसे हर युग में बार बार किसीअग्नि परीक्षा से गुजरना
पालनहारी , सृजनकारी शक्ति रूपिणी , दुर्गा , काली, नारी अब किसी
अपमान सहने के लिए बेबस या लाचार नहीं है