रिश्तों में आज़ादी
रिश्तों में आज़ादी
रिश्ते गहरे खून के रिश्ते
कितने मधुर कितने न्यारे
माँ बच्चे का मुख देख बलाए लेती
उसके हर कष्ट हर पीड़ा को हर लेती
उसकी किलकारिओं संग हंस लेती
बच्चों को फलने फूलने की पूरी आज़ादी देती
लेकिन उस माँ को बच्चों ने कितनी आज़ादी दी
परदेस जा रहे बेटे को रोकने की आज़ादी
दुःख और लाचारी में बेटे का हाथ थामने की आज़ादी
भरपेट भोजन करने की आज़ादी
अपने लिये सपने देखने और पूरे करने की आज़ादी
भाई बहन के मान मनुहार का रिश्ता
राखी के कच्चे धागों में बंधी मजबूत गांठों का रिश्ता
बहन की गरीबी भाई के घर की शान और शौकत में फंस
कर मिलने की आज़ादी खो देती है
चाचा, भतीजा , मामा भांजा में सम्मान और आज़ादी होती तो घर घर में कलह करने वाले शकुनि या कंस ना बैठे होते।
भतीजी या भांजी अपनी इज़्ज़त को आंचल में छुपा ना रखती
रिश्तों में सम्मान और आज़ादी ही जरूरी है
पति पत्नी का रिश्ता
प्रेम , अभिसार , पूर्ण समर्पण का रिश्ता
भावी पीढ़ी के सृजनकर्ता
जनक जननी जिनके
संस्कारों से फलती फूलती भावी पीढ़ी
ऐसे रिश्तों में आज़ादी और परस्पर सम्मान ना हो तो
ले लो या दे दो तलाक़
मासूम भोले बच्चे किसी डेकर या
फिर किसी अनजान आया के आंचल में आंसू पोंछ लेते हैं
नानी नाना दादी दादा परदेस में आस लगाए बैठे रहते हैं
सूनी आँखों से बाल गोपाल की राह तकते थक जाते पर वो नहीं आते ना उन्हें जाने की आज़ादी मिलती है
रिश्तों की डोर कंही गहरी उलझी पड़ी है आज़ादी की आस में कंही जंग खा कर पड़ी है
आज़ादी ही आज़ादी की गुहार लगा रही
सुन लो अब कही देर ना हो जाये
सुन लो अब कही देर ना हो जाये