Friday, May 13, 2022

रिश्तों में आज़ादी 

रिश्तों में आज़ादी 

रिश्ते गहरे खून के रिश्ते 

कितने मधुर कितने न्यारे 

माँ बच्चे का मुख देख बलाए लेती  

उसके  हर कष्ट हर पीड़ा को हर लेती 

उसकी किलकारिओं संग हंस लेती 

बच्चों को फलने फूलने की पूरी आज़ादी देती 

लेकिन उस माँ को बच्चों ने कितनी आज़ादी दी

परदेस जा रहे बेटे को रोकने की आज़ादी 

दुःख और लाचारी में बेटे का हाथ थामने की आज़ादी 

भरपेट भोजन करने की आज़ादी 

अपने लिये सपने देखने और पूरे करने की आज़ादी 

भाई बहन के मान मनुहार का रिश्ता 

राखी के कच्चे धागों में बंधी मजबूत गांठों का रिश्ता 

बहन की गरीबी भाई के घर की शान और शौकत में फंस 

कर मिलने की आज़ादी खो देती है 

चाचा, भतीजा , मामा भांजा में सम्मान और आज़ादी होती तो घर घर में कलह करने वाले शकुनि या कंस ना बैठे होते। 

भतीजी या भांजी अपनी इज़्ज़त को आंचल में छुपा ना रखती 

रिश्तों में सम्मान और आज़ादी ही जरूरी है 

पति पत्नी का रिश्ता 

प्रेम , अभिसार , पूर्ण समर्पण का रिश्ता 

भावी पीढ़ी  के सृजनकर्ता 

जनक जननी जिनके 

संस्कारों से फलती फूलती भावी पीढ़ी 

ऐसे रिश्तों में आज़ादी और परस्पर सम्मान ना हो तो 

ले लो या दे दो तलाक़ 

मासूम भोले बच्चे किसी डेकर या 

फिर किसी अनजान आया के आंचल में आंसू पोंछ लेते हैं 

नानी नाना दादी दादा परदेस में आस लगाए बैठे रहते हैं 

सूनी आँखों से  बाल गोपाल की राह तकते थक जाते पर वो नहीं आते ना उन्हें जाने की आज़ादी मिलती है 

रिश्तों की डोर कंही गहरी उलझी पड़ी है आज़ादी की आस में कंही जंग खा कर पड़ी है 

आज़ादी ही आज़ादी की गुहार लगा रही 

सुन लो अब कही देर ना हो जाये 

सुन लो अब कही देर ना हो जाये 




No comments: