Wednesday, December 11, 2024

 


खोई
 
पहचान

अमेरिका में आकर मैं अपनी पहचान खो बैठी हूँ

नौकरी की तलाश में अपनी संस्कृति पीछे छोड़ आई हूँ

साड़ी छोड़ कर पैंट -शर्ट में घूम रही हूँ

साड़ी में जो अंग गरिमा छलकाते थे पैंट -शर्ट मेँ  वे बेडोल छवि दिखला रहे हैं

अमेरिका में आकर मैं अपनी पहचान खो बैठी हूँ

अपनी प्यारी मीठी-मीठी सी हिन्दी भाषा को विदा कर गिटपिट अँग्रेजी की झड़ी लगा रही हूँ

साहिब की भाषा में साहिब को समझा रही हूँ

नौकरी पाने का हर प्रयास कर रही हूँ

रहने के लिये रह रही हूँ सहने के लिये सह रही हूँ

अमेरिका में आकर मैं अपनी पहचान खो बैठी हूँ

अमेरिका में आकर मैं अपनी पहचान खो बैठी हूँ

पहनावा बदला भाषा बदली  राष्ट्रीयता भी अपनी बदल डाली

पूछे कोई तो हर साक्षात्कार में कहती हूँ

मैं अमेरिका की नागरिक हूँ इस पद के लिये सबसे योग्य व्यक्ति मैं ही हूँ

साहिब की भाषा में साहिब को समझा रही हूँ

अमेरिका में आकर मैं अपनी पहचान खो बैठी हूँ

अमेरिका में आकर मैं अपनी पहचान खो बैठी हूँ

पहनावा बदला भाषा बदली यहाँ तक की अपनी राष्ट्रीयता भी मैंने बदल डाली

सब कुछ कर डाला पर अपनी चमड़ी का रंग बदल ना पाई

सब कुछ कर डाला पर अपनी चमड़ी का रंग बदल ना पाई

जो हर साक्षात्कार में हर बार ,बार -बार एक ही प्रश्न खड़ा कर देता है

किस देश से आई हो ?

क्या चमड़ी का रंग साथ लाई हो ?

क्या भारत से आई हो ?

हाँ मैं भारत से आई हूँ अपनी चमड़ी का रंग भारत से ही लाई हूँ

हाँ मैं गर्व से कहती हूँ कि मैं भारत की बेटी हूँ यही मेरी सही पहचान है

बाकी सब आडंबर है नौकरी पाने का इक असफल प्रयास मात्र है

ऐसे आडंबर को मैं छोड़ती हूँ नौकरी की अर्ज़ी को रद्दी की टोकरी में डालती हूँ

हाँ मैं गर्व से अपनी चमड़ी के रंग की  जयकार करती हूँ क्योंकि उसमे ही

  मेरी खोई पहचान छुपी जिसको मैं और छुपाना नहीं चाहती हाँ  मैं भारत की बेटी हूँ यही मेरी सही पहचान है







Sunday, May 19, 2024

 भाव भरे मेरे आंसू 

नमकीन पानी की कुछ बूंदे ज्ब आंखों की कोरों पर आ ठहरीं तो कहलाईं आंसू 

नारी शक्ति का स्वरूप है फिर आंसू उसकी कमजोरी क्यों कहलातेँ हैं 

कही कमजोरी ही हथिआर बनकर वार करती है जब पृकृति का सहयोग होता है 

दुखी माता के दिल की हाहाकार तो इंद्र का भी आसन हिला देती है 

भरे बदल भी बरखा बनकर आंसू बरसाते है 

पत्ते पर ठहरी ओस की बूंदे भी प्रकृति के आंसू हैं 

जहाँ दुख के आँसू अति पीड़ित असहनीय हृदय की व्यथा दर्शाता है 

वहीं ह्रदय जब ख़ुशी आह्लादित होता है तो ख़ुशी के अश्रू आँखों से बह निकलते हैं 

अश्रू हमारी भावनाओं का सच्चा आईना है 

 तभी तो हम हँसते हँसते रो पडते हैं 

और रोते रोते हँस देते हैं 

जहाँ शब्द गहरे शस्त्र है वहां आंसू पैनी धार से सीधे ह्रदय पर घाव करते हैं 

 आंसू तो आँसू ही हैं पर व्यथा से भरे और ख़ुशी से आह्लादित ह्रदय का सुकून भी आँसू ही हैं 

ऑंसू वहाँ विजयी हैं जहां शब्द फीके और अर्थहीन हो जाते हैं 

तो इसलिए रोईए जी भर रोईए मन के भावों का इज़हार कीजिए 

मत सोचिए पुरूष होकर आप कमज़ोर कहलायेंगे या नारी होकर असहाय 

ये तो राहत है अभिव्यक्ति है हमारे भावों की 

ये ही तो मेरे भाव भरे आँसू जो आप सबकी आँखों में आ ठहरे हैं