पतझड़ का मौसम है आया
सुन्दर -सुन्दर रंगों की बहार है लाया
भर लो भर लो मन में अपने बदले मौसम का यह सुन्दर परिधान
रंग बदला है पत्तों ने अपना
बदला है पेड़ों ने अपना आज परिधान
लाल पत्तों से ढ़का वृक्ष अपनी ही लालिमा से लजाता झुक झुक जा रहा है
पीले पत्तों के वृक्षों ने भी पतझड़ की सुनहरी छटा के सामने सिर झुका दिया है
नारंगी और भूरे पत्ते भी पतझड़ संग मुस्कान बिखेर रहें हैं चहुँ ओर
बदला मौसम बदल रहें हैं सब पत्तों के रंग
दूर अकड़ कर खड़ा पड़ा है एक हरा ही हरा पेड़
बदले मौसम बदले सारी दुनिया मैं ना बदलूं
ऐसी अकड़ ठान कर बना हठी वह
अकड़ तुम्हारी है बेमानी प्यारे!
बदले मौसम के आगे टिका ना कोई
पतझड़ जाते जाते लेकर जायेगा
सारे के सारे हरे , लाल , पीले , नारंगी , और भूरे पत्ते अपने साथ
निर्वस्त्र खड़े फिर वृक्ष करेंगे मौन आरधना
बसंत के नाम का आवाहन होगा चारों ओर
खड़े बटोही राह तकें कब आओगे फिर निर्मोही बसंत
मत डालो तुम बर्फ की चादर हम पर सह ना पायेंगे हम हिम
शायद फिर ना मिल पाएं हम अगले बसंत को तकते तकते