Sunday, January 10, 2016



देस  परदेस  

अपना घर अपना भारत छोड़कर मैं इस सुन्दर नगरी अमेरिका में बसी हूँ

यहाँ रौशनी है चमक दमक है

हर सुविधा क्रेडिट कार्ड से बटन दबाते ही उप्लब्ध हो जाती है

यहाँ बच्चा बूढ़ा और जवान  मुझे मेरे पहले नाम से बुलाता है ,"नीना "

आसान दो अक्षर का नाम है श्री या जी या अन्य कोई औपचारिकता नहीं है

फिर भी कोई आत्मीयता का भाव नहीं छलकता पर सुनने में अच्छा लगता है
नाम ही तो है पर नाम के दोनों अक्षर अलग होकर यहाँ अपनी सार्थकता दिखातें हैं

नी से है यहाँ का नीरस भोजन ,कोई तीखा या जलभरा गोलगप्पा तो नहीं।

पत्तल वाली चाट नहीं है पर फ़ास्ट फ़ूड हर ओर दीखता है नीरस है तो क्या हुआ अपने पसंद की ड्रेसिंग डालिये

फ़ूड का पहनावा बदलते ही उसका स्वाद भी आपकी पसन्द के अनुसार बदल जायेगा

नाम का दूसरा अक्षर ना है ना से ना ना होती है हर दफ्तर में जब मैं नौकरी की अर्जी लेकर जाती हूँ वहाँ

नाम  में क्या रखा है ?

अपना घर अपना भारत छोड़कर मैं इस सुन्दर नगरी अमेरिका में बसी हूँ

तन से मैं यहाँ हूँ , मन तो मेरा कानपुर के गलियारों में ही भटकता रहता है

मैं सोचती हूँ कि कानपुर जाऊँ चाट के ठेले पर खड़े हो कर ढेर सारे गोलगप्पे खाऊँ

चटनी में डूबी हुई आलू भरी कचौड़ी खाऊँ
तितलिओं के पीछे भागूँ।

जेठ की तपती दुपहरी में भाई बहनों के संग ताश और लूडो खेलूँ

माँ के साथ सारे मसाले पीसूं और आचार चटनी बनाऊँ

शाम को सखिओं के संग  शिवाले की तंग गलिओं में धक्का मुक्की करके सबसे पहले छपाई की दुकान में पहुँचूँ

अपनी कमीज़ में सबसे सुन्दर छापा मैं बनवाऊँ

फूल बाग़ में लगे झूले में सबसे पहले मैं झूलूँ

सखिओं के संग जब जब होड़ लगे तो हर बार मैं ही जीतूं

हर हारी बाज़ी जीत सखिओं की सरताज़ बनूं मैं

सोचती हूँ मैं कानपुर जाऊँ

सखिओं को संदेसा भेजा

चढ़ विमान पर पहुँची हूँ मैं कानपुर

चारों और गाडिओं की लाइन लगी है ,"आइये बहनजी कहाँ जाइएगा " की गुहार लगी है

मैं रिक्शा मेँ बैठ क़र उन गलिओं में फिर से घूम कर अपने बचपन की यादो क़ो समेटना चाहती हूँ

सामने से एक सखी शोफर के साथ गाड़ी से हाथ हिला कर मुझे रोकती है बरबस ही मुझे अपनी गाड़ी में धकेलती है।

अपने घर में सब सखिओं को मेरे स्वागत सम्मान की हिदायत देकर मुझे लिवाने आई है

मैं अमरीका से आई हूँ सुविधाओं की आदि हूँ

मेरे लिये मेरी प्यारी सखिओं ने मुझे हर सुविधा बिना बटन दबाये ही उपलब्ध करा दी है

सखिओं का स्नेह  और अपनापन , स्वागत सम्मान के सागर में कहीं विलीन सा हो गया है.

अपना देस भी अब मुझे परदेस सा दिख रहा है

अपना घर अपना भारत छोड़कर मैं इस सुन्दर नगरी अमेरिका में बसी हूँ


No comments: