Saturday, March 25, 2017

वीर शहीदों की क़ुरबानी से रंगी धरा फिर रक्तरंजित हो उठी है

क्योंकि फिर आज हम शहीद दिवस मना रहें हैं  

शहीद दिवस मनाना केवल हमारी आदत ही ना बन जाये

शहीदों की कुर्बानी को याद करना भी केवल हमारी आदत ही ना बन जाये

ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ी भारत माता के दर्द को मह्सूस करने वाले शहीद

याद और नमन के सच्चे अधिकारी हैं

वक्त की माँग को पूरा करने के अपनी जिंदगी कुर्बान करने वाले वीर शहीदों की दस्ताने कभी कम ना हुई अफ़सोस की धरा उनके लिए छोटी हो जाती है

जब हम उनहे याद करने के लिए एक दिवस शहीद के आने की राह देखते हैं

दीपक जला कर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देकर अपना कर्तव्य की अतिश्री कर लेते हैं

आज़ादी मिलने के बाद भी किस किस का सपना कितना पूर्ण हुआ  

जिस आज़ादी के लिये शहीदों ने प्राण गवांये

क्या वह आज़ादी हर भारतवासी को नसीब हुई है

क्या हर भारतवासी  को  दो वक्त की रोटी नसीब हुई है

तन पर कपड़ा सिर पर छत सबको ना नसीब हुई तो कैसी आज़ादी पाई हमने

वीर शहीदों की कुर्बानी का कर्ज़ आज हमपर है

यह कर्ज़ चुकाना हर भारतवासी का फ़र्ज़ है आज 
आँसू बहाना आज काफ़ी नहीं होगा

शर्म से झुके भारत माता के मस्तिक की शर्म हमे शर्मसार कर दे इससे पहले हम जाग जाएँ

उठ कर देखें

सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लाये 

ऐसा भारत जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ फिर बसने लगें

सबको रोटी मिले और चारों और प्रेम की बंसी बजाता सूरज निकले हर रोज

आओ मिलकर सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लाये

वीर शहीदों की कुर्बानी का क़र्ज़ उतारे

आज़ शहीद दिवस में मिलकर यह शपथ लें

व्यर्थ ना होगी कुर्बानी उनकी

उनके सपनोँ का भारत मिलकर हम बनाएंगे

सच्ची आज़ादी को ढूंढकर लायेंगे हम यह वादा रहा 



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