सच से आज मुलाकात हो गई
कहीं घर के एक कोने में छुपकर बैठा था
सच से आज मुलाकात हो गई
मन में सवाल ढेरों दबे हुए थे
समझ नहीं आ रहा था कहाँ से शुरुआत करूँ
धूमिल , कांतिहीन स्वरुप देखकर ड़रते हुए मैंने पूछ ही लिया
यह कैसा रूप बनाया है दर्शन भी दुर्लभ हो लिए हैं अब तो
सच ने कहा इस युग ने ही यह स्वरूप दिया है
कभी झूठ ग्रहण बनकर मुझे आधा या कभी पूरा ही निगल भी जाता है
मैंने तर्क किया अभी भी सच लिखने वाले पत्रकार दीखते हैं
सच ने कहा सच लिखकर छप जाये और अगर छप भी जाये तो कितने लोग पढ़ पाते हैं
मेरा कांतिवान रूप बहुत कम लोगों तक ही पहुँच पाता है
मैंने सोचा सच ने सच ही कहा
मैंने फिर तर्क किया हमारे नेता अपने वादों और इरादों के पक्के होते हैं
सच बोलते हैं चुनाव के पहले हर समस्या हल करने का वादा भी नेता ही करते हैं
अच्छे दिन आने वाले हैं का नारा हर ओर गूँजता है
सच ने कहा नारा तो अच्छा है अच्छे दिन भी चुनाव के बाद आते ही हैं
मैंने पूछा फिर समस्या क्या है ?
सच ने कहा समस्या भोली जनता की समझ मे है
क्योंकि अच्छे दिन जनता के लिए नहीं खुद नेता के लिये आते हैं
और जनता ठगी सी रह जाती है यह भी नहीं कह पाती
की यह अगर ये अच्छे दिन हैं तो बराए मेहरबानी हमे हमारे पुराने बुरे दिन लौटा दीजिए
मैंने फिर तर्क किया रिश्तों में सच जीते हैं हम अभी भी
सास बहु, भाई -बहन , चाचा -भतीजी , जीजा -साली कितने ही रिश्ते अभी भी हमारी सभ्यता का हिस्सा बने हुए हैं
सच ने कहा सच है पर इन रिश्तों में कब दरारें पड़ जाती हैं और रिश्तों में खोखलापन आ जाता है
रिश्तेदारों को पता नहीं लगता और सच का दम निकल जाता है
सास के हाथ की थपकी मे बहु को स्वार्थ दीखता है
बहन की गरीबी भाई की अमीर शान शौकतभरी जिंदगी पर धब्बा बन
जाती है तो भाई बहन से नजरें चुरा लेता है ,
भतीजी का रूप जवानी कब चाचा का ईमान डोल कर भतीजी का दामन
दागदार कर जाती है खुद सच को भी पता नहीं चलता और रिश्तों का सच
रिश्तों के झूठ में दफ़न हो जाता है
सच थका सा बोला रिश्तों की बात मत करो अपनों से लगे घाव बेगानों से
लगे घावों से ज्यादा तकलीफ़देह होते हैं
मैने आखिरी तर्क दिया
रिश्तों में एक रिश्ता है जो सच जितना ही पाक है नेक है निस्वार्थ प्रेम से
भरा है
सच हैरान सा देख रहा है जानने की उत्सुकता से उत्साहित हो गया है
मैने कहा
माँ और बच्चों के रिश्तों में निस्वार्थ प्रेम है सच है ऎसा पवित्र प्रेम जिससे
भगवान को भी ईर्षा हो जाये
सच का स्वरूप निखर गया फिर कांतिवान और निर्मल , निश्छल उज्ज्वल
हो गया
सच ने अपने इस जीवित रूप को नतमस्तक किया
रिश्तों को जीवित रखने वाले इस रिश्ते को प्रणाम किया
आज फिर कांतिवान , उज्जवल निर्मल और निश्छल सच से मुलाकात हो
ही गई
1 comment:
Wrote it for Sapne at CGIS Harvard
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